मकुनाही पोखर पर लूटन मिश्र वैद्य के मुँह धेअत देख के काशीनाथ उनका से कहलें कि
एगो नया बात सुननी हाँ। बैद्य उनका ओर ध्यान देके पुछलन कि का भइल बा।
काशीनाथ कहले- अपना इलाका में एगो ग्राम सेविका आइल बिया।
बैद्य जी पुछलन- ग्राम सेविका के माने का होला ? का उ गाँव भर के पैर दबाई।
काशीनाथ- उफ गाँवे-गाँवे घूम के औरतन के शिक्षा दी।
बैद्य जी- का शिक्षा दी ?
काशीनाथ- इहे कि पर्दा से बहरि आके कुल काम कर जा।
बैद्य जी दांत तरे जीभ दवा के कह लें – अब जे – जे न होए। पफूदन चैध्री घाट पर बइठल लोटा माँजत रहस। इ सब सुन के कहले-ओकर उमिर का ह।
काशीनाथ अन्दाज लगावत कहलन- इहे करीब अठारह-उन्नइस।
चैध्री- वियाहल ह कि कुवांरी।
काशीनाथ- देखे में कुवांरे जइसन लागे ली।
चैध्री- त उफ दोसरा के का सिखाई। लड़िका सिखावे बुढ़दादी के।
काशीनाथ- चैध्री जी, इ मत कहीं। उ बहुत पढ़ल लिखल बिया। एही से सरकार ओकरा एह काम पर बहाल कइले बिया।
चैध्रीजी व्यंग्य करत कहलन- अरे तू सरकार के का बूझे ल। दोसरा के बहु-बेटी के नचवा के देखे में खूब मजा आव ता। ओकरा पतिव्रता से कवन काम बा।
अतने में कान पर जनेउफ-चढ़इले पंडित जी पहुँच गइले आ कहलन- एह युग में भ्रष्टे के उन्नति होत बा। जे अपने भ्रष्ट रहे ला उफ सब के, सउफँसे गाँव के औरतन के बिगाड़ के छोड़ दी। का एको गो बेटी-पुतोह कहना मानी? ओकरा ग्राम सेविका ना ग्राम सोध्किा बूझीं।
बौकू बाबू डाॅड़ भर पानी में खड़ा होके मंतर जपत रहस। उनका रहल ना गइल। उ कहले
ओह छोकड़ी के अपना अंगना में टपे ना देव।
काशीनाथ- बाबा अइसे छोकड़ी जन कहीं। उ अपफसर होके आइल बिया।
बौकू बाबू उत्तेजित हो के कहलन- एह गाँव में अपफसरी शान ना चली। हमार घर बिगाड़े
आइ त मार करची के गोड़ तूड़ देब।
अतने में बौकू बाबू के पोता दउड़त-हाँपफत आइल।
बौकू बाबू पूछलन- का हो भुटकुन अइसे उदड़ल काहे अइलह। घर में साँप निकलल बा का।
भुटकुन हाॅपफत-हाॅपफत कहलन- एगो मेहरारू खूब उज्जर लूगा पहिरले आइल बिया। दलान
में कुर्सी पर बइठल बिया आ अंगना में सबसे भेंट करे के कहतिया। दादी कहली ह कि बाबा
से पूछ आव।
बौकू बाबू पुछलन उफ के ह ? का करे आइल बिया रे हमरा अंगना से कवन काम बा ?
भुटकुन के चुप देख काशीनाथ पुछलन- का हो भुटकुन ओकर माथ उघारे ह कि ना ? हाथ
में बेगो बा ?
भुटकुन कहलन- हॅँ।
काशीनाथ कहलन- तब जरूर उहे होई।
बौकू बाबू कहलन- ओह कुलच्छनी के आउरो कवनो घर ना मिलल हा।
सभे मुसुकाए लागल। बौकू बाबू खीसे में घरे चल दिहलन।
जब उफ अपना अंगना पहुंचलन त जेकरा भर रास्ते उफ गरियावत अइलन ह उफ अंचरा के पफेंटा
बान्ह के एक हाथ में झारू आ दोसरा हाथ में पफेनाइल के बोतल लेके मोरी सापफ करे में
लागल बिया। अंगना में आउरी औरत लोग घूघ तान के पीछे खड़ा बाड़ी। बौकू बाबू के
अंगना में घुसते मोरी के महक से नाक पफाटे लागत रहे आज सापफ बदल गइल बा। ओसारा
पर के कूड़ो-करकट सापफ हो गइल बा। चैखट पर करिखा से करिया लालटेन आज चमचम
खुंटी पर चमकत बा। घर के महीनवन के झोल-झक्कर सापफ भ गइल बा।
बौकू बाबू सोचे लगलन- अइसन संस्कार वाली मेहरारू अपना घर मंे रहित त रोज-रोज
अइसन गदकिच्चन ना होइत।
बौकू बाबू जब पूजा पर बइठलन त खिड़की का बहरी उहे लड़की पिछुआरा में नींबू के पेड़
में कीड़ा के दवाई घोर के पिचकारी से पियावत दिखाई पड़ल।
देखते-देखते गाँव के काया पलट हो गइल। जे नाक झाँप के भागल पिफरत रहे उ
विमला देवी क कहला पर कुदारी ले के गंदा माटी बहरी पफंेकत रही। बाद में साबून से हाथ
मल के विमला देवी नमस्ते क के चल दे ली। बाकिर बौकू बाबू के धरणा अब बिल्कुल
बदल गइल। अब ओकरा कुलच्छनी आ डाइन ना ट्टषि कन्या माने लगलन। खाना खाय के
बेरिया बौकू बाबू पत्नी से कह लें- देखलीं ई बंगाली लड़की के पानी।
उनकर पत्नी तपाक से कह ली उफ बंगालिन नइखे उफत मैथिल बिया।
बैजू बाबू के करेजा में ध्क्क से लागल। पंजाविन, बंगालिन, अइसन करित त कवनो बात ना
बाकिर ई मैथिल हो के अइसन करत बिया। का एकरा भाई-बाप नइखे जे अबले कुॅवारे
बिया। उनकर मेहरारू कह ली- हम पूछले रहीं त कह ली बच्चा पैदा करे वाली देश में बहुत
लोग बा देश सेवा करे वाला कम। एह से हम देश सेवा अपनवली ह।
बौकू बाबू बिगड़ के कहलन दोसर रहित त मनतीं बाकिर एह माटी से निकल के अइसन
शान देखाई ई हम ना मानब।
कुछ दिन में विमला देवी के कारण घर-घर उजियार हो उठल। जवना इनार में कीड़ा सोहरत
रहे ओह में ब्लीचिंग पाउडर दिया गइल बा। घइला अब उघार नइखे राखल जात उज्जर
कपड़ा से ढंका{ता। जवन मेहरारू लोग रोज-रोज लड़त रहे उफ सभे उफन-काँटा ले के बिनत
रहे ली। सड़क पर अब नाक नइखे मुंदे के। सभकर बारी-झारी में तरकारी उफपजे लागल।
नारी समाज के ई नव जागरण अब घरे में ना बहरियो पहुंच गइल। समौलवाली मुसम्मात अब
अपने मोढ़ा पर बइठके धन कटावत बिया। पंडितजी कहले ई कइसन जमाना आ गइल
कवनो दोग-दाग में छिप के कटवइती त ठीक कहल जाइत। बाकिर बीच गाँव में बइठ के
मरद लोग के छाती पर मूंग दलल ठीक नइखे।
काशीनाथ कह लें- ग्राम सेविका…
ग्राम सेविका के नाम सुनते पंडित आग बबूला भ गइलन। पहिले घर-घर से उनका
नेवता मिलत रहे। अब विमला देवी का अइला से कुछ कम हो गइल बा। पंडित जी कहले-
गाँव में अइसन-चांडालिन आ गइल बिया कि ध्रम-करम अब गाँव में रह कहाँ गइल बा।
वैद्योजी विमला देवी से खुश नइखन, काहे कि अब बभनटोली से मुसहरटोली तक जाके
जनाना लोगन का बीचे दवाई मँगनिए बांटे ली। उहो विगड़ के कहलन- सब बवाल के जड़
इहे ग्राम सेविका बिया, जे केचुआ के पफूँक-पफूँक के साँप बना रहल बिया। पफूदन चैध्री
अलगे ध्मंडे चूर होके कहलन- हमनी किहाँ अगर जनाना अइसे करी त ओकर गरदनिए…।
ई बोलते रहस कि एकाएक चिहुँकलन, जइसे ध्क्क से बिजली लाग गइल होखे। सड़क
किनारे उनके मेहरारू गुड़ के चेकी बनवावत रहली। चैध्री जी चुपा गइलन। बैद्यजी
कहहन- कलयुग में का ना होई। पंडितजी मुसुका के कहलन- ई ग्राम सेविका सब के
बहतरा बना दी। खाली उनके पंडिताइन बाचल बाड़ी। बाकिर पंडित जी घरे अइलन त
देखलन कि उनकर पंडिताइन समध्ी से हँस-हँस के बतियावत रहली।
आ एगो उफ दिन आ गइल जब सउँसे गाँव आँख खोल के नारी समाज के जागरण
देखत रह गइल। विमला देवी का अगुआई में गाँव भर के बेटी-पुतोह अँचरा के पफेंटा बान्ह
के श्रमदान से महिला पुस्तकालय के नेयो दे रहल बाड़ी। तनिके दिन में महिला क्लब बन
गइल। दूइए बरिस में गाँव के काया पलट हो गइल। गाँव के चैध्री के भावे मास्टरी करे
लगली, बैद्यजी के बेटी नर्स बन गइली आ पंडिताइन के पुतोहु रेडियो से गावे लगली।
विमला देवी आपन रोपल पेड़ के पफरत-पफुलात देख के खूब खुश रहली। बाकिर एही बीच
उनकर बदली दोसर जगहा भ गइल।
गाँव भर के लोग, अध्किा महिला लोग इकट्ठा होके विमला देवी के बिदाई करत
रह लीं। जवन लोग कबहुँ इनका पर आँख मटकावत, भौं सिकोड़त रहे उफ सभे आज विमला
देवी के बिदाई में आँख से लोर ढरकावत रहे।