मकुनाही पोखर पर लूटन मिश्र वैद्य के मुँह धेअत देख के काशीनाथ उनका से कहलें कि एगो नया बात सुननी हाँ। बैद्य उनका ओर ध्यान देके पुछलन कि का भइल बा। काशीनाथ कहले- अपना इलाका में एगो ग्राम सेविका आइल बिया।बैद्य जी पुछलन- ग्राम सेविका के माने का होला ? का उ गाँव भर के […]
Hari Mohan Jha
प्रो. हरिमोहन झा मैथिली साहित्य के जानल-मानल आ लोकप्रिय साहित्यकार रहलें। इहाँ के जनम 1908 में बैशाली जिला के कुमर बाजितपुर गाँव में भइल रहे। मैथिली साहित्य के लोकप्रियता में इनका रचनन के बहुते योगदान बा। रूढ़िवादिता आ परंपरा के तुड़त इनका रचनन में प्रगतिशीलता आ नवीनता पावल जाला। ‘कन्यादान’ आ ‘द्विरागमन’ इनकर दू गो प्रमुख उपन्यास बा जवना पर पिफल्मों बनल बा। हास्य रस युक्त रचनन में ‘चर्चरी’, ‘एकादशी’, ‘खट्टर काका क तरंग’, ‘रंगशाला’, ‘प्रणम्यदेवता’ प्रमुख बा। हास्य-व्यंग्य के माध्यम से इहाँ का अंधविश्वास आ सामाजिक-धर्मिक पाखंड पर जबर्दस्त चोट कइले बाडें़। इनकर अंतिम कृति ‘जीवन-यात्रा’ पर 1985 में मरणोपरांत इनका साहित्य अकादमी पुररस्कार से सम्मानित कइल गइल रहे। 1984 में इनकर निध्न भ गइल। इनकर कहानी ‘ग्राम सेविका’ के अनुवाद पाठ्य-पुस्तक निर्माण समिति द्वारा कइल गइल बा।